रहस्यमाई चश्मा भाग - 13
चन्दर ने आदिवासी नौजवानों से जड़ी बूटियां एकत्र कराई और महिलाओं को शुभा कि चिकित्सा के लिए उचित निर्देश दिया आदिवासी नौजवानों ने अपने मुखिया चन्दर द्वारा बताई गई एक एक जड़ी बूटियों को एकत्र कर कुनबे की महिलाओं को दिया कुनबे कि महिलाओं ने शुभा कि चिकित्सा मुखिया चन्दर के निर्देश के अनुसार शुरू किया रात दिन कि कड़ी मेहनत रंग लाई और शुभा के बाहरी एव आंतरिक घाव ठीक होने लगे उंसे पूर्ण ठिक होने में लगभग एक माह का समय लग गया जब शुभा के शरीर के पत्थरो के घाव ठीक हो गए!
शुभा अब विल्कुल आदिवासी महिलाओं में पूरी तरह रच बस गयी थी पहनावा भी उसका आदिवासी समाज की तरह ही हो चुका था जब चन्दर को विश्वास हो गया कि शुभा अब कुछ बता सकती है पुनः वह जानने की कोशिश करने लगा कि वह कौन है ? कहाँ कि रहने वाली है ? आदि आदि लेकिन चन्दर का विश्वास गलत सावित हुआ अब भी शुभा सिर्फ सुयश को ही पुकारती सुयश के अतिरिक्त जैसे उंसे कुछ याद ही नही था!
चन्दर एव उसके आदिवासी समाज ने सामुहिक निर्णय लिया कि अब सब कुछ मुंडा देवी के ऊपर छोड़ दिया जाय मुंडा देवी आदिवासी समाज की कुल देवी वही आगे इस बात का निर्णय करेंगी की शुभा कौन है और इसके साथ आदिवासी समाज को क्या वर्ताव करना चाहिए ? समय बीतने लगा शुभा आदिवासी बच्चों के साथ खेलती उन्हें खिलाती लेकिन सभी बच्चे बच्चियो को सिर्फ सुयश नाम से ही पुकारती और एक ही शब्द सुयश बोलती समय अपनी गति से चलता जा रहा था।
एक माह दर माह बीतते पूरे एक वर्ष शुभा को कालाहांडी के आदिवासी कुनबे में पहुंचे हो चुके थे वह आदिवासी महिलाओं के साथ घुल मिल कर रहती कोई कार्य नही करती जिससे उसके पागल होने का कोई सवाल ही उठे सिर्फ बोलती नही आदिवासी बच्चों के साथ खेलते खिलाते सुयश ही पुकारती इसके अतिरिक्त वह कुछ भी नही बोलती दिन भर आदिवासी महिलाओं के साथ जंगल मे लकड़ियां चुनती और आदिवासी व्यंजन बनाने में मदद करती उंसे मांशाहार में भी क्या खाना उचित होगा क्या नही पूरा भान था!
वह आदिवासी परिवारों के लिए अनबुझ पहेली लेकिन बहुत प्रिय थी ।आदिवासी मुखिया चन्दर को यह चिंता सताए जा रही थी कि कब तक पराई अमानत को समाज मे रखा जाए धीरे धीरे समाज मे शुभा को लेकर जब तब दबे स्वर में आवाजे भी उठती कि आखिर कब तक यह अनजान आदिवासी समाज मे रह सकती है इसे समाज क्या दर्जा देकर समाज मे समाहित कर सम्मान देता रहेगा कही किसी दिन इसके कारण कोई बवाल समाज के गले पड़ गया तब क्या होगा ?
चन्दर आदिवासी परिवारों कि शंकाओं को समझा बुझा कर समाप्त करने की कोशिश अवश्य करते लेकिन कुछ दिन बाद पुनः समस्या जैसी की तैसी खड़ी हो जाती आखिर एक दिन आदिवासी कुनबे का सब्र जबाब दे गया और आदिवासी समाज ने समाज को एकत्र करके एलान करवाया की एक महीने में यदि अनजानी औरत का कोई पता नही चला तो समाज इसे जंगल के बाहर जहाँ से इसे लाया था वही छोड़ आएगा चन्दर ने कहा जैसी मुंडा देवी की मर्जी वही आदिवासी परिवारों की मर्जी चन्दर भी किसी चमत्कार कि आशा में प्रतीक्षा करने लगे ।
सिंद्धान्त पूरे पन्द्रह दिनों तक अनेको जगहों पर शुभा कि तलाश करते करते अंत मे श्यामाचरण जी के पास लौट आया और बताया कि सिर्फ इतना ही पता लग सका कि कोई औरत जो सुयश सुयश कहती अर्धविक्षिप्त अवस्था मे इधर उधर घूम रही थी लोग उसे डायन और पागल समझ कर दुदकारते बच्चे पत्थर मारते वह किस्मत कि मारी कहां गयी किसी को पता नही,,,,,,
सिंद्धान्त ने श्यामचरण झा जी से वापस लौटने की इज़ाज़द चाही श्यामाचरण जी ने सिंद्धान्त से एक दिन के लिए आतिथ्य स्वीकार करने के लिये सिंद्धान्त से अनुरोध किया सिंद्धान्त को कोई आपत्ति नही थी श्यामचरण झा ने सिंद्धान्त के आतिथ्य में कोई कोर कसर नही उठा रखी मैथिली व्यजन पकवानों एव मैथिल परंपरा से भाव विभोर कर दिया सिंद्धान्त एक दिन श्यामाचरण जी के आतिथ्य के बाद दरभंगा लौटने की अनुमति चाही पूरा गांव एकत्र हुआ और सिंद्धान्त को विदाई दी श्यामाचरण झा जी ने अपनी बघ्घी दिया औऱ स्टेशन तक छोड़ने की व्यवस्था किया,,,,,,,,,,
सिंद्धान्त ने पूरे गाँव एव श्यामचरण झा जी के प्रति सहयोग एव आतिथ्य के लिए कृतज्ञता व्यक्त किया और चल पड़ा सिंद्धान्त स्टेशन पहुंचा और चुरामन को बड़े आदर सम्मान के साथ विदा किया कुछ ही देर ट्रेन के इंतज़ार मे प्लेटफार्म पर बैठा दो घण्टे इंतज़ार के बाद ट्रेन आयी सिंद्धान्त ट्रेन में सवार हुआ कुछ देर बाद ट्रेन चल पड़ी ट्रेन का सफर पूरा करने के उपरांत सिंद्धान्त दरभंगा स्टेशन पहुंचा और टांगे से सीधे मंगलम चौधरी कि हवेली पहुँचा,,,,,,,
चौधरी साहब को जब यह पता लगा कि सिंद्धान्त बैरंग बिना शुभा के ही लौटा है तो उनके मन मे आशंकाओं के घनघोर बादल उमड़ते घुमड़ते बिजली सी तेजी से कौंधने लगी उन्होंने सिंद्धान्त को तुरंत बुलाने के लिए सुखिया को भेजा सुखिया ने सिंद्धान्त को चौधरी साहब का संदेश आदेश सुनाया सिंद्धान्त बिना बिलम्ब किये मंगलम चौधरी कि सेवा में उपस्थित हुआ!
चौधरी साहब हवेली में बेसब्री एव बेचैनी से ऐसे टहल रहे थे जैसे उन्हें किसी बेहद खास व्यक्ति कि प्रतीक्षा हो ज्यो ही सिंद्धान्त पहुंचा मंगलम चौधरी ऐसे दौड़े जैसे कोई बेसब्र सिंद्धान्त को गले लगाया जैसे किसी बच्चे को उसके जिद्द कि ख़्वाहिस पूरी होने वाली हो उन्होंने सिंद्धान्त को पकड़ कर अपने बगल में बैठाया सच्छाई यह थी कि चौधरी साहब के सामने खड़े होने से पहले किसी को हज़ारों बार सोचना पड़ता था ऐसा नही कि चौधरी साहब बहुत सांस्कारिक विचार व्यवहार के सैद्धातिक एव व्यवहारिक व्यक्ति थे और उन्हें कोई भी असभ्यता या अव्यहारिक आचरण विल्कुल ही पसंद नही करते थे,
मगर आज चौधरी साहब ने अपने ही द्वारा स्थापित सभी मानदंडों को जाने किस भावनाओं के वसीभूत तोड़ दिया था सिंद्धान्त तो रास्ते भर यह सोचकर कांप उठता की पहली बार चौधरी साहब द्वारा सौंपी गई जिम्मेदारी को पूरा नही कर पाया है कैसे वह चौधरी साहब का सामना ही कर पायेगा जब उसने उलट स्थिति देखा तब भी उसका मन किसी अमंगल कि आशंका से शसंकित था तभी चौधरी साहब ने सिंद्धान्त से प्रश्न किया सिंद्धान्त जिस कार्य के लिये तुम गए थे वह किस हद तक सफल या असफल हुए और क्यो क्या कारण थे ?
क्या जानकारी प्राप्त हुई चौधरी साहब के एक साथ इतने प्रश्नों को सुनकर सिंद्धान्त हक्का बक्का रह गया वह जब भी कुछ बोलने को होता चौधरी साहब बोल उठते कि सुयश कि माँ के विषय मे कोई सुराग जानकारी मिली जब चौधरी साहब को अपनी गलती का एहसास हुआ तब वह चुप होकर सिंद्धान्त के उत्तर की प्रतीक्षा करने लगे सिंद्धान्त ने अपनी यात्रा के विषय मे गांव पहुचने एव सुरहु पहलवान से मुलाकात एव श्यामाचरण झा जी के आतिथ्य सहयोग एव अपने पंद्रह दिनों कि गांव गांव गली गली शुभा कि तलाश एव टेसू चुरामन और रामाशीष के साथ का पूरा वृतांत बताया और अंत मे श्यामाचरण जी कि स्वागत और मैथिल सांस्कार को बताना नही भुला अंत मे सिंद्धान्त ने चौधरी साहब से बताया कि शुभा मईया सुयश को खोजने बहुत प्रतीक्षा के बाद निकल गयी!
वह प्रत्येक व्यक्ति से सिर्फ सुयश के विषय मे पूछती आम जन ने उन्हें पागल और डायन समझ लिया और पत्थर मारते पता नही वह कहा गयी कोई भी बता सकने में असमर्थ था मंगलम चौधरी आवक रह गए उन्हें अपराध बोध एव आत्मग्लानि ने और बोझिल बना दिया उन्होंने सिंद्धान्त से कहा कि वह सुयश से कुछ नही बताएगा अब सुयश से तब तक मिलेगा भी नही जब तक वह हवेली स्वस्थ होकर ना आ जाये,,,,,,,,,
सुयश धीरे धीरे स्वस्थ हो रहा था वह हवेली से आने जाने वालों से अपनी माई के आने के विषय मे सवाल करता मंगलम चौधरी को जैसे कोई गंभीर आघात लग गया हो वह गुम सुम रहने लगे और अपने कारिंदो पर चिड़चिड़ापन के कारण बेवजह बरसते रहते उनके इस व्यवहार से उनके कारिंदे बहुत हैरान परेशान थे आख़िर चौधरी साहब के व्यवहार में सिंद्धान्त के लौटने के बाद ऐसा बदलाव क्यो हुआ ?
उनकी समझ मे कुछ नही आ रहा था चौधरी साहब हर समय यही सोच कर परेशान थे कि उनका चश्मा किस मनहूस घड़ी में रेलवे लाइन पर गिरा जिसके कारण एक नौजवान ने अपना दाहिना हाथ गंवा दिया और उसकी माँ पागलों कि तरह दार ब दार की ठोकर खाती,,,,,,,,,
लोंगो के तानों एव पत्थरो कि मार झेलती जीवन मृत्यु को लड़ रही पता नही किस गुमनामी अंधेरे में खो गयी जिसका बेटा एक अनजान व्यक्ति मुझ के लिए अपना जीवन ही दांव पर लगा दिया वह बदनसीब माँ डायन कही जा रही है इसमें लोंगो का क्या दोष? उन्हें सच्छाई का पता नही है चौधरी साहब का व्यथित मन आत्मग्लानि एव अपराध बोध से बोझिल हो जाता चौधरी साहब के पास ईश्वर पर भरोसा करने के अलावा कोई विकल्प नही था वह ईश्वर से उस दिन कि प्रार्थना करते जिस दिन सुयश और शुभा कि खुश देख सके ।
जारी है
kashish
09-Sep-2023 07:57 AM
Awesome
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Varsha_Upadhyay
15-Jul-2023 07:47 PM
बहुत खूब
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Alka jain
15-Jul-2023 02:48 PM
Nice one
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